October 23, 2025

“सरपंच संघ का मुख्यमंत्री निवास कूच! मुख्यमंत्री से  मांग — ‘अरवा नहीं, उशना चावल चाहिए जनभावना का सवाल!’”

सरपंच संघ का मुख्यमंत्री निवास कूच! मुख्यमंत्री से  मांग — ‘अरवा नहीं, उशना चावल चाहिए जनभावना का सवाल




लैलूंगा क्षेत्र के 75 ग्राम पंचायतों की आवाज अब सीधे मुख्यमंत्री के दरबार तक पहुंच गई है! ग्रामसभा में पारित जनता की मांग — “राशन में अरवा नहीं, उशना चावल चाहिए” — को लेकर लैलूंगा सरपंच संघ के अध्यक्ष शिव प्रकाश भगत के नेतृत्व में एक बड़ा प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री निवास बगिया पहुंचा, जहाँ मुख्यमंत्री से मुलाकात कर क्षेत्र की भावनाओं और समस्याओं को जोरदार ढंग से रखा गया।

इस प्रतिनिधिमंडल में सरपंच संघ के सचिव सधन राम नग, कोषाध्यक्ष नम्बर साय भगत, सदस्य दिनेश भगत, बलराम सिदार, उज्वल सिदार, पुष्पकांति भगत, वेदमती भगत, चमेली भगत, त्रिवेणी पैंकरा, गोमती भगत, मिली खलखो, आनंद सागर नाग, मीरा सिदार, राजकुमार लकड़ा और संजय कुजूर सहित दर्जनों पंचायत प्रतिनिधि मौजूद रहे।

बैठक में सरपंच संघ ने मुख्यमंत्री से स्पष्ट कहा कि लैलूंगा की जनता को अरवा चावल खाने की आदत नहीं है, और वर्षों से इस क्षेत्र में उशना चावल ही मुख्य भोजन का हिस्सा रहा है। इसलिए शासन को जनभावना का सम्मान करते हुए पीडीएस दुकान में अरवा की जगह उशना चावल वितरण की व्यवस्था करनी चाहिए।

सरपंच संघ अध्यक्ष शिव प्रकाश भगत ने कहा —

यह केवल चावल की मांग नहीं, बल्कि यह जनता की परंपरा और स्वाद की रक्षा की लड़ाई है। जनता वही चाहती है जो उसके शरीर और संस्कृति के अनुरूप हो। सरकार को जनहित में इसे गंभीरता से लेना चाहिए।”

मुख्यमंत्री ने प्रतिनिधिमंडल की बात ध्यानपूर्वक सुनी और विषय पर संबंधित विभाग को परीक्षण कर आवश्यक निर्णय लेने का आश्वासन दिया।

लैलूंगा के ग्रामीणों में सरपंच संघ की इस पहल को लेकर जबरदस्त उत्साह देखा जा रहा है। गाँव-गाँव में चर्चा है कि आखिरकार लैलूंगा की आवाज बगिया से रायपुर तक गूंजी।
लोगों ने कहा कि यह सरपंच संघ की एकजुटता और नेतृत्व क्षमता का परिणाम है।

ग्रामसभा से लेकर मुख्यमंत्री निवास तक पहुँचा यह मुद्दा अब पूरे रायगढ़ जिले में चर्चा का केंद्र बन गया है। ग्रामीण उम्मीद जता रहे हैं कि सरकार जल्द ही उनकी मांगों पर सकारात्मक फैसला लेगी।

जनता की जुबान से:

हम उशना खाते आए हैं, अरवा पेट में नहीं पचता! सरपंच लोग सही बात कहे हैं, सरकार को सुनना ही पड़ेगा।”

लैलूंगा की जनता अब एक सुर में कह रही है — ‘हमारा हक, हमारा उशना!’