प्रशासनिक कार्यवाही से लोगों का उठ रहा भरोसा ग्राम पंचायत कुंजारा में मनरेगा योजना में फर्जीवाड़ा का मामला उजागर
प्रशासनिक कार्यवाही से लोगों का उठ रहा भरोसाग्राम पंचायत कुंजारा में मनरेगा योजना में फर्जीवाड़ा का मामला उजागर

लैलूंगा।
प्रशासनिक कार्यवाही पर लोगों का भरोसा तब उठने लगता है जब शिकायत करने के बावजूद वर्षों तक किसी प्रकार की ठोस कार्रवाई नहीं होती। ऐसा ही ताजा मामला लैलूंगा तहसील अंतर्गत ग्राम पंचायत कुंजारा का है, जहां मनरेगा योजना में डभरी निर्माण कार्य के नाम पर भारी भरकम राशि आहरित कर ली गई, जबकि जमीन पर एक भी कार्य आज तक पूरा नहीं हुआ।
यह पूरा मामला क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है। हितग्राही ने समय-समय पर इस फर्जीवाड़े की शिकायत संबंधित अधिकारियों से की, किंतु अब तक किसी प्रकार की कार्यवाही न होना प्रशासन की संवेदनहीनता को उजागर करता है।
मामला क्या है
ग्राम पंचायत कुंजारा निवासी हितग्राही ने मनरेगा योजना के अंतर्गत वर्ष 2023-24 में डभरी निर्माण के लिए आवेदन किया था। योजना के तहत स्वीकृत कार्य का एस.आई. नंबर AS/1064 है। इस कार्य हेतु शासन की ओर से राशि जारी कर दी गई। लेकिन आज तक वास्तविक निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाया।
आश्चर्य की बात यह है कि निर्माण कार्य न होने के बावजूद राशि का आहरण कर लिया गया। अर्थात कागजों पर कार्य पूर्ण मान लिया गया, लेकिन धरातल पर कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा।
शिकायतों का सिलसिला
फर्जीवाड़ा उजागर होने के बाद हितग्राही ने कई बार संबंधित अधिकारियों से शिकायत की। उसने लिखित में आवेदन देकर बार-बार अपनी समस्या रखी। यहां तक कि छत्तीसगढ़ शासन द्वारा संचालित सुशासन उत्सव के दौरान भी हितग्राही ने आवेदन देकर डभरी चोरी की शिकायत दर्ज कराई।
इसके बावजूद, आज दिनांक तक न तो किसी अधिकारी ने स्थल निरीक्षण किया और न ही फर्जीवाड़ा करने वाले जिम्मेदार लोगों पर कोई ठोस कार्रवाई की गई।
आमरण अनशन की चेतावनी
हितग्राही की लगातार उपेक्षा और प्रशासनिक चुप्पी ने अंततः उसे आमरण अनशन पर बैठने की चेतावनी देने के लिए मजबूर कर दिया।
हाल ही में हितग्राही ने लैलूंगा एस.डी.एम. को लिखित आवेदन देकर कहा है कि यदि एक माह के भीतर दोषियों पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती तो वह आमरण अनशन पर बैठ जाएगा।
हितग्राही का कहना है कि उसने एक-एक दरवाजे पर दस्तक दी, हर संबंधित अधिकारी को अवगत कराया, लेकिन वर्षों से केवल आश्वासन मिलता रहा। अब जबकि शासन-प्रशासन ने भी आंखें मूंद ली हैं, तो सत्य और न्याय के लिए उसे भूख हड़ताल का सहारा लेना पड़ेगा।
जिम्मेदार अधिकारियों पर सवाल
यह मामला केवल ग्राम पंचायत स्तर का फर्जीवाड़ा नहीं माना जा रहा, बल्कि इसमें उच्च अधिकारियों की भूमिका पर भी प्रश्नचिह्न उठ रहे हैं।
क्योंकि बिना अधिकारियों की संलिप्तता या लापरवाही के बिना निर्माण कार्य किए राशि आहरण कर लेना संभव ही नहीं है।
अगर समय रहते जांच और कार्यवाही होती तो दोषियों पर नकेल कसी जा सकती थी, लेकिन वर्षों तक शिकायतों को दरकिनार करना भ्रष्टाचार की बू को और मजबूत करता है।
इस प्रकार की घटनाएं आम जनता का शासन और प्रशासन से भरोसा डगमगाने लगती हैं।
योजनाएं जनता के विकास और भलाई के लिए बनती हैं, लेकिन अगर उन्हीं योजनाओं को लूट का जरिया बना दिया जाए तो यह न केवल शासन की छवि धूमिल करता है बल्कि ग्रामीणों को विकास के लाभ से भी वंचित कर देता है।
कुंजारा पंचायत के ग्रामीणों का कहना है कि ऐसे कई मामले हैं, जहां कागजों में काम पूरा दिखाकर राशि निकाल ली गई, लेकिन वास्तविकता में धरातल पर काम अधूरा या नदारद है।
सुशासन पर सवाल
राज्य शासन लगातार सुशासन और पारदर्शिता की बात करता है। योजनाओं के क्रियान्वयन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने का दावा किया जाता है।
लेकिन कुंजारा का यह मामला शासन के दावों की पोल खोलता है।
जब शासन के सुशासन उत्सव में भी आवेदन देने के बाद कार्रवाई नहीं हुई तो आम जनता यह सोचने पर मजबूर हो जाती है कि आखिर शिकायत किसके पास की जाए और न्याय कैसे मिलेगा।
ग्रामीणों का आरोप है कि पंचायत स्तर पर सरपंच, सचिव और रोजगार सहायक की मिलीभगत से ऐसे कारनामे होते हैं।
जबकि उच्च अधिकारी इस पर आंख मूंद लेते हैं।
ग्रामीणों ने कहा कि अगर समय रहते दोषियों पर कार्रवाई नहीं की गई तो वे भी हितग्राही के समर्थन में आंदोलन करने पर विवश होंगे।
अब पूरा मामला एस.डी.एम. लैलूंगा के पाले में है। हितग्राही ने उन्हें लिखित आवेदन देकर साफ चेतावनी दे दी है।
देखना यह होगा कि एस.डी.एम. लैलूंगा कब तक इस पर संज्ञान लेते हैं और क्या दोषियों पर कोई ठोस कार्रवाई होती है या यह मामला भी अन्य शिकायतों की तरह फाइलों में दबकर रह जाएगा।
यदि समय रहते कार्रवाई नहीं हुई तो यह मुद्दा और बड़ा रूप ले सकता है और प्रशासन की साख पर और गहरा असर डाल सकता है।
ग्राम पंचायत कुंजारा का यह मामला छत्तीसगढ़ में ग्रामीण योजनाओं की जमीनी हकीकत को उजागर करता है।
मनरेगा जैसी महत्त्वपूर्ण योजना, जो गरीब और बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए शुरू की गई थी, उसमें इस प्रकार की गड़बड़ी बेहद गंभीर है।
प्रशासन को चाहिए कि वह इस मामले की निष्पक्ष जांच कराए, दोषियों पर कठोर कार्रवाई करे और पीड़ित हितग्राही को न्याय दिलाए।
तभी आम जनता का प्रशासन पर से उठता भरोसा वापस आ सकेगा और सुशासन के सपने को साकार किया जा सकेगा।
जितेंद्र सिंह ठाकुर की रिपोर्ट

