November 20, 2025

राष्ट्रपति मुर्मु बोलीं — बसन्त, आप मेरे भी पुत्र हैं, 73 साल पुरानी विरासत फिर जीवंत

राष्ट्रपति मुर्मु बोलीं — बसन्त, आप मेरे भी पुत्र हैं, 73 साल पुरानी विरासत फिर जीवंत



विशेष रिपोर्ट | अंबिकापुर

जनजातीय गौरव दिवस के राज्य स्तरीय कार्यक्रम में गुरुवार को एक ऐतिहासिक और भावुक क्षण देखने को मिला, जब राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने पण्डो जनजाति के वरिष्ठ सदस्य बसन्त पण्डो से विशेष मुलाकात की। कार्यक्रम स्थल पर जब बसन्त पण्डो राष्ट्रपति मंच के समीप पहुँचे, तो राष्ट्रपति मुर्मु ने अत्यंत आत्मीयता के साथ उनका कुशल-क्षेम जाना, उन्हें पास बुलाया और स्नेहपूर्वक शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने बसन्त पण्डो से कहा—
“आप मेरे भी पुत्र हैं।”
यह वाक्य सुनकर पूरा सभामंडप तालियों की गड़गड़ाहट से गुंज उठा, वहीं बसन्त पण्डो भावुक दिखाई दिए।



डॉ. राजेंद्र प्रसाद से जुड़ी ऐतिहासिक यादें

बसन्त पण्डो का राष्ट्रपति से संबंध कोई नया नहीं है। यह रिश्ता 73 वर्ष पुरानी एक ऐतिहासिक घटना पर आधारित है।
वर्ष 1952 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद अंबिकापुर प्रवास पर आए थे। उस समय पण्डो जनजाति के 08 वर्षीय बालक गोलू (आज के बसन्त पण्डो) भी कार्यक्रम में मौजूद थे।

जनजातीय समाज के इस नन्हे बच्चे में सादगी और मासूमियत देखकर राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने गोलू को गोद में उठा लिया।
उसी पल उन्होंने बच्चे का नाम बदलकर “बसन्त” रख दिया और प्रतीकात्मक रूप से उन्हें अपना दत्तक पुत्र मान लिया।

इसी ऐतिहासिक घटना के बाद पण्डो जनजाति को पूरे देश में
“राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र”
कहे जाने का सम्मान प्राप्त हुआ।



पण्डो समाज के लिए गौरव का क्षण

अंबिकापुर के इस कार्यक्रम में बसन्त पण्डो की उपस्थिति और राष्ट्रपति मुर्मु के स्नेहपूर्ण व्यवहार ने पण्डो समाज में उत्साह की लहर पैदा कर दी है।
जनजातीय समुदाय के लोगों ने कहा कि:
• यह मुलाकात पण्डो समाज की पहचान और सम्मान का प्रतीक है।
• देश की सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठी राष्ट्रपति द्वारा बसन्त पण्डो को “पुत्र” कहना समुदाय के लिए बहुत बड़ा संदेश है।
• इससे पण्डो समाज की समस्याएँ व मुद्दे राष्ट्रीय स्तर पर और मजबूती से उठ सकेंगे।



बसन्त पण्डो आज भी उसी सरलता के साथ

लगभग 80 वर्ष की आयु के बसन्त पण्डो आज भी उसी सादगी और सरलता के साथ जीवन व्यतीत करते हैं। उन्होंने राष्ट्रपति मुर्मु से मुलाकात को “जीवन का सबसे बड़ा सम्मान” बताया और कहा कि यह वही अपनापन है जो उन्हें 1952 में डॉ. राजेंद्र प्रसाद से मिला था।



कार्यक्रम में वातावरण भावुक

मुलाकात के दौरान पूरा कार्यक्रम स्थल तालियों की आवाज़ से गूंज उठा। मंच पर मौजूद जनजातीय नेताओं, सामाजिक प्रतिनिधियों और अधिकारियों ने भी इस दृश्य को ऐतिहासिक बताया।
यह क्षण न केवल अंबिकापुर बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ के जनजातीय समाज के लिए गौरव और स्वाभिमान का प्रतीक बन गया।

बसंत ने पाँच बिंदुओं पर लिखित मांग रखा राष्ट्रपति से

पण्डों जनजाति के लोगों को केंद्रीय सूची में शामिल करना, केंद्र की सभी योजनाओं का लाभ मिल सके।
पण्डों जनजाति के लोगों को मिली भूमि का पट्टा जारी करना।
पण्डों जनजाति के शिक्षित बेरोजगारों को नौकरी का लाभ।
छत्तीसगढ़ के सभी जिलों में जहाँ पंडो जनजाति निवासरत हैं वहाँ आवासीय शिक्षा प्रदान की जाए।
पण्डों जनजाति निवासरत समस्त जिलों में अस्पताल की सुविधा उपलब्ध कराई जाए।